कहीं मुहब्बत का दरिया तो कहीं समंदर देखा|
मालिक, अजीब तेरी दुनिया का मंजर देखा ||
जिसे हमने अपना समझा वो गैर निकला |
उसकी जुबा पर प्यार, हाथो में खंजर देखा ||
मालिक, अजीब तेरी दुनिया का मंजर देखा ||
जिसे हमने अपना समझा वो गैर निकला |
उसकी जुबा पर प्यार, हाथो में खंजर देखा ||
10 टिप्पणियां:
बहुत बढिया !!
बहुत बढिया!!
बहुत बढिया मुक्तक है।बधाई स्वीकारें।
wah!!!
बहुत बढिया !!
sirf accha nahi likha hai simit shabdo mein tikhapan hai
रचना के साथ-साथ चित्र भी बहुत बढ़िया है!
बधाई!
bas theek-thaak hai....bahut acchhi nahin.....
वाह्………क्या बात कह दी चंद शब्दों मे ही…………बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति।
भाव अच्छे हैं ... बधाई
तकनीक और अच्छी हो सकती थी ....
निरंतरता बनाए रखें
रचना + चित्र = उम्दा :)
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