प्यार बन कर जी गई

जिन्दगी के जहर को अमृत समझ कर पी गई |
मैं हर गम के दौर में मुस्कुरा कर जी गई ||

अब मौत
बेचारी मुझे क्या मार सकेगी |
लाखों दिलों में जो प्यार बन कर जी गई ||

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:- यशोदा कुमावत

2 टिप्‍पणियां:

''अपनी माटी'' वेबपत्रिका सम्पादन मंडल ने कहा…
इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
बेनामी ने कहा…

bahut khub